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आओ प्रेम-प्रेम खेलें

KADLI KE PAAT कदली के पात
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आओ प्रेम-प्रेम खेलें

AAO PREM PREM KHELEN

राम कृष्ण खुराना


पवित्र गुरुवाणी में लिखा है कि –

जऊ तऊ प्रेम खेलण का चाऊ,

सिर धरी तली गली मेरी आऊ !

इतु मारगि तुम पैर धरीजै,

सिर दीजै, काण न कीजै !!

अर्थात – यदि तुम्हें प्रेम खेलने का चाव है तो…. ! तो…?…तो… ?? तो क्या ??? यह क्या ? प्रेम-प्रेम खेलने के लिए शर्त ? जी हां ! वाणी में कहा है कि यदि तुम प्यार करना चाहते हो तो… अब यहां “यदि” और “तो” शब्द आ गए तो इसका सीधा सा अर्थ है कि इसमें कोई न कोई शर्त तो अवश्य ही होगी ! वाणी कहती है… तो  तुम्हें प्यार की शर्त माननी होगी ! तुम्हें प्रेम के खेल के नियमों के अनुसार ही प्रेम का खेल खेलना पडेगा ! तुम्हें कुछ बंधनों का पालन करना होगा ! तुम्हें एक सीमा के अंदर रह कर ही प्यार करना होगा ! इस संसार को चलाने के लिए भी तो कुछ नियम बनाए गए हैं ! इस देश का कार्य सुचारु रूप से चल सके उसके लिए भी कुछ कानून लागू किए गए हैं ! तभी दुनिया का, देश का काम ठीक ढंग से चल रहा है ! फिर प्यार के लिए भी तो कोई शर्त, कोई कानून, कोई नियम होना ही चाहिए ! एक गीत याद आ गया कोई शर्त होती नहीं प्यार में, मगर प्यार शर्तों में तुमने किया !” यहां भी प्यार शर्तों में ? प्यार करने के लिए शर्त लगा दी ! कहते हैं कि प्यार किया नहीं जाता हो जाता है ! इसके अनुसार यदि तुम्हें प्यार हो गया है ! अगर तुम इस डगर पर चलना चाहते हो, इस हाई-वे पर आगे बढना चाहते हो, इस मार्ग को अपनाना चाहते हो, तो तुम्हें प्यार पाने की शर्त को मंज़ूर करना होगा ! तुम्हें प्यार की शर्त के लिए हां…हां…हां…कहना होगा ! तभी तुम प्यार कर सकोगे, प्यार को निभा सकोगे, प्यार में आगे बढ सकोगे, प्रेम पा सकोगे ! मगर प्रेम-प्रेम खेलने के लिए शर्त क्या है ? प्यार का खेल खेलने के नियम क्या हैं ?  प्यार पाने के लिए क्या करना पडेगा ?

इसका उत्तर वाणी की दूसरी लाईन ‌- सिर धरी तली गली मेरी आऊ ! कितनी बडी बात लिख दी है वाणी में ! कितनी गहरी बात ! कितनी अनोखी बात ! जऊ तऊ प्रेम खेलण का चाऊ, सिर धरी तली गली मेरी आऊ ! अर्थात अगर तुम प्रेम का खेल खेलना चाहते हो तो अपना सिर अपनी हथेली पर रख कर मेरी गली में आओ ! यह शर्त है प्रेम का खेल खेलने की ! प्रेम-प्रेम खेलने की ! प्रेम करने की ! सिर्फ वाणी ही ऐसा नहीं कहती ! और लोग भी प्यार-प्यार खेलने के लिए कुछ ऐसी ही शर्त लगा रहे हैं –

ये बाडी है प्रेम की, खाला का घर नाहिं ।
सीस उतारो भूइं धरो, फिर पैठो घर माहि ।!

यह प्रेम की बाडी है, प्रेम का खेत है, प्रेम का आंगन है, प्रेम का घर है ! तुम्हारी खाला का घर नहीं ! तुम्हारी जायदाद नहीं ! तुम्हारी मलकीयत नहीं ! यदि तुम इस घर में आना चाहते हो, यदि तुम इस घर के सदस्य बनना चाहते हो, यदि तुम इस घर में पनाह लेना चाहते हो, तो पहले अपना सिर उतार कर धरती पर रख दो ! जमीन पर रख दो ! अपने आप को मिटा दो ! अपने “मैं” को खत्म कर दो ! अपने अंहकार को समाप्त कर दो ! अभिमान को छोड दो ! किसी ने कहा भी है –

मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मरतबा चाहे !

कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है !!

दाने को, बीज को, गुले गुलज़ार होने के लिए, फलने-फूलने के लिए, एक बडा पेड बनने के लिए, पहले खाक में मिलना पडता है ! मिट्टी में मिलना पडता है ! अपनी हस्ती को, अपनी इज़्ज़त को, अपनी मान-मर्यादा को मिटाना पडता है ! तब जाकर कुछ मरतबा मिलता है, कुछ इज़्ज़त मिलती है, कुछ मान मिलता है ! इसी तरह से अगर तुम प्यार पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें अपने आप को मिटाना होगा ! अपना अंहकार छोडना होगा ! यदि तुम्हारा अंहकार शेष है, यदि तुम में इगो का भाव है ! यदि तुम्हें अपने आप पर घमंड है ! यदि तुम यह मानते हो कि तुम भी कुछ हो, तो प्यार को पाने का सपना मत देखो ! तुम प्यार नहीं पा सकते ! क्योंकि अंहकार प्यार के बीच की बहुत बडी दीवार है !

कबीर ने भी कहा है –

प्रेम न बाड़ी ऊपजै,प्रेम न हाट बिकाय !

राजा परजा जेहि रुचे, सीस देई ले जाय ।

प्रेम को पाने के लिए तो सिर देना ही पडेगा ! क्योंकि यह कोई खेत में उगने वाली सब्ज़ी नहीं है ! मैदान में उगने वाला अनाज नहीं है ! हाट-बाजार में बिकने वाली जिंस नहीं है ! दुकान पर बिकने वाली वस्तु नहीं है ! किसी शो-रुम से खरीदा जाने वाला प्रोडक्ट नहीं है ! यहां बडे-छोटे का सवाल भी नहीं है ! आप राजा हैं या प्रजा ! आप मालिक हैं या नौकर ! आप अमीर हैं या गरीब ! आप पुरुष हैं या स्त्री ! कोई बात नहीं ! कोई हर्ज नहीं ! कोई फर्क नहीं ! सबके लिए एक ही नियम है ! एक ही कानून है ! एक ही शर्त है ! जो भी प्रेम-प्रेम खेलना चहता हो ! जिसको भी यह खेल पसंद हो ! जिसको भी यह रुचिकर लगे इसकी कीमत देकर ले जाय ! जी हां, कीमत देकर ले जाय ! अपना सीस, अपना सिर दे कर ले जाय !

आगे बढते हैं – इतु मारगि तुम पैर धरीजै !

यदि तुम इस मार्ग पर पैर रखना चाहते हो तो …..

मोहब्बत की राहों पे चलना सम्भल के !

उपनिषद् कहती है क्षुरस्य धार इव निशितादुरत्यया !

अर्थात – यह तेज छुरे की धार पर चलने जैसा दुष्कर है ।

क्योंकि इस आग के दरिया में डूब के जाना है ! डूबने की शर्त पहले है ! डूबने का डर मन में रख कर इस दरिया में कूदना होगा ! और दरिया ? दरिया भी आग का ! तैर कर निकल गए तो उस पार, नहीं तो बंटा धार ! यां बाबू रेल में यां जेल में ! यह कैसा रास्ता है ! यह कैसा मार्ग है ! यह कैसी सडक है ! कहते हैं कि प्रेम की गली बहुत संकरी होती है ! पथरीली होती है ! कांटों भरी होती है ! शायद इश्के मजाजी से इश्के हकीकी यानि कि लौकिक प्रेम से पारलौकिक प्रेम को पाने का रास्ता ! शारीरिक प्रेम से आत्मा का मिलन ! जब प्रेम की आवाज़ खुदा की दरगाह तक पहुंच जाती है ! जब प्रेम स्वयं इश्वर बन जाता है ! मन की सबसे उत्तम अवस्था में पहुंच जाता है ! उस समय मार लैला को पडती है मगर उस मार की लाश मजनू के हाथ पर दिखाई देती है ! कोडे लैला पर बरसाये जाते हैं परंतु उन कोडों की मार की पीडा, उसका दर्द मजनू को होता है ! यह है इश्क हकीकी ! यह है पारलौकिक प्रेम ! प्रेम का सच्चा रास्ता ! प्रेम का सही मार्ग ! सच्चा प्रेमी क्रांतिकारी होता है ! बलिदानी होता है ! त्यागी होता है ! हार न मानने वाला होता है ! इस प्रेम में वफादारी की शर्त है ! इस प्रेम को आप समझौते या एग्रीमेंट की तरह नहीं ले सकते । यह प्रेम शरीर के आकर्षण से ऊपर उठ जाता है !

अंत में गुरुवाणी में कहा है – सिर दीजै, काण न कीजै !

हैं ??? यह क्या बात हुई ! यह क्या कह दिया ? इतु मारगि तुम पैर धरीजै, सिर दीजै काण न कीजै ! यह तो युद्ध की भाषा है ! यह तो लडाई के मैदान का खेल है ! यह प्रेम की भाषा तो नहीं ! यह प्यार का खेल तो नहीं ! क्या प्यार इसी को कहते हैं ?  क्या प्यार ऐसे ही किया जाता है ? मां अपने वीर पुत्र को युद्ध के लिए भेजते हुए उसे मां के दूध की लाज रखने के दुहाई देती है ! एक सुहागन अपने पति को ताकीद करती है कि सीने पर गोली खाना पीठ दिखा कर मत आना ! प्रेम भी युद्ध हो गया ! प्रेम और युद्ध के नियम एक ही समान हो गए ! हां यही सच है ! जहर का प्याला राणा जी भेजा, पीवत मीरा हांसी रे ! युद्ध करो तो युद्ध के नियमों को मानो ! प्यार करते हो तो प्यार की शर्त पूरी करो ! सिर कट जाय परवाह नहीं सिर झुकना नहीं चाहिए ! सिर दे दो पर पीठ मत दिखाओ !

जऊ तऊ प्रेम खेलण का चाऊ, सिर धरी तली गली मेरी आऊ ! इतु मारगि तुम पैर धरीजै, सिर दीजै, काण न कीजै !

अर्थात अगर तुम प्यार का खेल खेलना चाहते हो तो अपना सिर अपनी हथेली पर रख कर आओ ! इस मार्ग पर पैर रखने के बाद फिर सिर भले ही चले जाय पर पीठ मत दिखाना !

राम कृष्ण खुराना

9988950584

khuranarkk@yahoo.in

R K KHURANA

A-426, MODEL TOWN EXTN.

LUDHIANA (PUNJAB) INDIA

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