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बिका हुआ खरीदार

KADLI KE PAAT कदली के पात
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बिका हुआ खरीदार

राम कृष्ण खुराना

किसी ने काल-बेल का बटन दबा दिया था ! घंटी का स्वर कमरे में भर गया ! उठना पडा ! आई-ग्लास से आंख लगा कर देखा तो हरीश का गर्दन से उपर का भाग उग आया !

“हरीश……!” एकदम चौंक पडता हूं !

लगभग छः-सात माह पूर्व मैं और हरीश एक ही मकान में किरायेदार थे ! फिर मैंने अपना फ्लैट खरीद लिया ! तब से हरीश ने कभी सीधे मुंह बात नहीं की ! यद्यपि उसका और मेरा कोई मुकाबला नहीं ! उसकी क्वालिफिकेशन, पोस्ट आदि सब कुछ मुझ से कम है ! आयु में भी मैं उससे बडा हूं, फिर भी ईर्ष्या…….? घर आना तो दूर, मिलने पर कभी दुआ-सलाम भी नहीं होती ! वो मुझे देख, कतरा कर निकल जाता है, और मैं बरबस मुस्करा देता हूं !

दरवाजा खोलने पर ज्ञात हुआ कि हरीश अकेला नहीं है ! साथ में एक तरुण भी है ! दोनो ने बडे ही आत्मीय ढंग से मुझे अभिवादन किया ! मन में शंका हुई !“आज यह चांद निशकलंक कैसे ?”   बिना किसी मतलब के तो हरीश आने से रहा ! परंतु साथ में यह तरुण ? कुछ समझ में न आया !

”ओहो…..आओ…आओ…! हमारी उम्र बहुत बडी है !”

अभिवादन के उत्तर में मैंने किंचित व्यंग्य से कहा ! मेरे होठों पर मुस्कराहट की एक लहर दौड गई !

“हमारी उम्र…? क्या…आपकी ..? मेरा मतलब… है… हां आपकी उम्र बहुत बडी है ! ईश्वर आपको दुगनी उम्र दे ! आपके सिर पर ही तो विश्वविद्यालय चल रहा है !” हरीश ने मक्खन लगाया !

मुझे चापलूसी करने वालों से एक प्रकार की चिढ सी है ! मैं साफ बात करने में विश्वास रखता हूं, क्योंकि चिकनी-चुपडी बातों के नीचे बहुधा गंदगी का ढेर छिपा रहता है ! फिर मैं उसकी इस आदत से परिचित हूं कि जब हरीश को अपना कोई काम निकलवाना होता है तो पहले वो भूमिका के रूप में चापलूसी करने लगता है ! परंतु आज यह किस काम से आया है  यदि रुपये पैसे के मामले में आता तो इसे अकेला ही आना चाहिए था ! फिर यह तरुण कौन है ?

“खैर इतनी तरीफ तो मत करो !” मैंने अपनी बात साफ की ! “मैं तो इसलिए कह रहा था कि कम से कम आज तुमने हमें याद तो किया !” इतना कहकर मैं उनको लेकर ड्राईंग-रुम में आ गया ! सोफों के चरमराने के साथ ही हरीश का स्वर उभरा – “अरे नहीं भाई साहब, आप तो हमें शर्मिन्दा कर रहे हैं !” वह मुझे भाई-साहब ही कहा करता था ! “बस कुछ समय ही नहीं मिल पाता ! हमारा जीवन भी कोई जीवन है ? एकदम मशीनी ! मेरा मतलब है सुबह उठो, नहाओ-धोओ और दफ्तर ! सारा दिन कलम घिसो ! फिर घर का सामान और सौ झंझट ! बस इसी प्रकार से दिन निकल जाता है ! रोज ही सोचता था कि आपको मिल आऊं ! परंतु समय ही नहीं मिल पाया !”

समय न मिलने का बहाना उसने एक बार पहले भी किया था ! जब मैंने नया फ्लैट लिया तो रामायण का अखंड-पाठ रखवाया था ! सारा मोहल्ला आया परंतु हरीश परिवार समय न मिल पाने के कारण न आ सका ! उसके पश्चात हमारे सम्बन्ध की गांठे दिन-प्रतिदिन ढीली होती चली गईं !

“आपने यह अच्छा किया जो अपना फ्लैट ले लिया ! अपना फिर भी अपना होता है !” मौन हरीश ने ही तोडा ! फिर उसने एक गहरी सांस छोडकर अपनी दोनो टांगे आगे की ओर पसार लीं और अपनी पीठ सोफे के साथ लगा दी ! “किराएदार का भी कोई जीवन नहीं ! मकान मालिक सोचता है कि मैंने मकान किराए पर देकर इनको खरीद लिया है ! बात बात पर टोकता है ! यह न करो, वह न करो, यहां बच्चे को पेशाब न कराओ, यहां बर्तन साफ न करो, बिजली न जलाओ, पानी न गिराओ ! बस पूछिये मत ! ज़रा सा कुछ कह दो तो मकान खाली करने की धमकी !” इतना कहते कहते उसके चेहरे पर विषाद की रेखांये उभर आईं !

“हां, हमें कम से कम इन झंझटों से तो छुट्टी मिली !” मैंने उसकी हां में हां मिलाई ! मैं उसके चेहरे के भाव पढना चाह रहा था कि उसने यह बात किस आधार पर कही है ! तभी उसके चेहरे की रेखाओं में परिवर्तन आ गया !

“आज भाभी जी दिखाई नहीं दे रहीं ! मेरा मतलब है कहीं गईं हैं क्या ?” उसने एकदम चौंकते हुए से पूछा !

”नहीं अन्दर ही है ! मंजू देखो तो कौन आया है ?” मैंने अन्दर वाले कमरे की ओर मुंह करके पत्नी को आवाज़ लगाते हुए हरीश पर कुछ अपनेपन की छाप छोडी ! पत्नी हल्के नीले रंग की कटवर्क की साडी पहने हुए अन्दर आई ! हरीश ने आदर पूर्वक थोडा सा उठकर नमस्ते की ! तरुण ने भी सभ्यतावश हाथ जोड दिए ! मंजू ने सिर हिलाकर नमस्ते का उत्तर देते हुए हरीश की पत्नी का समाचार पूछ्ने की औपचारिकता निभाई ! उसे साथ न लाने की शिकायत की ! फिर तरुण की ओर देखते हुए हरीश से पूछा – “आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए ?”

”अरे भाभी जी, रास्ता-वास्ता क्या भूलना ! आप तो कभी आती नहीं हमारे घर ! आपसे मिले बहुत दिन हो गए थे ! यह मेरा ब्रदर-इन-ला है ! देहरादून से आया है ! हम लोग इधर से गुज़र रहे थे, मैंने सोचा इसे भी आपके दर्शन कराता चलूं !” हरीश ने उत्तर दिया !

”दर्शन” शब्द पर मैं चौंकता हूं ! उसके साले पर एक भरपूर निगाह डालता हुआ होंठो ही होंठो में मुस्करा देता हूं ! तरुण क्षण भर मेरी ओर देखता रहा, फिर उसने आंखे दूसरी ओर कर लीं और अपने आप को कमरे की सज़ावट देखने में व्यस्त होने का असफल प्रयास करने लगा ! हरीश प्रतिदिन, प्रातः व सांय दूध लेने के लिए यहीं से होकर गुजरता है ! कभी इधर झांकने का भी कष्ट नहीं किया ! एक-दो बार सामने पडने पर मैंने इस बात का गिला भी किया ! फिर कहना छोड दिया !

मैंने पत्नी की ओर देखकर कहा – “हरीश के लिए चाय-वाय तो ले आओ !”

”नहीं-नहीं भाभी जी, आप बैठी रहिए ! चाय तो हम घर से पीकर ही चले थे ! हम तो ऐसे ही घूमते हुए चले आए थे ! मेरा मतलब है, आप ज़रा भी तकल्लुफ न करें !”

”भाई तकल्लुफ की तो इसमें कोई बात नहीं ! हमारे यहां अक्सर सभी लोग चाय पीकर ही आते हैं और हमें उन्हें ही चाय पिलानी पडती है !” शरारतभरी मुस्कान बिखेर कर मंजू नौकर को चाय के लिए कहकर फिर आकर बैठ गई ! हरीश कट कर रह गया ! उसका साला व मैं मुस्करा दिए !

”भाई साहब आप तो बेकार ही फारमैलिटी-शो कर रहे हैं ! हम तो घर के ही आदमी हैं ! आप तो हमारे घर आते नहीं ! कल आप भी भाभी जी को लेकर हमारे घर आईये न !”

”तुम जो रोज़ आ जाते हो हमारे यहां !” मैंने व्यंगबाण छोडा !

हरीश ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया ! वह कमरे का निरीक्षण सा करने लगा ! कुछ क्षण उसी प्रकार देखने के पश्चात पत्नी से बोला – “भाभी जी, आपने कमरा बहुत सुन्दर ढंग से सज़ा रखा है ! वास्तव में आप एक कुशल ग्रहणी हैं ! सजावट देखकर तो आपको दाद देनी ही होगी !” उसने फिर चापलूसी का सहारा लिया !

मंजू अपनी प्रशंसा सुनकर फूलकर कुप्पा हो गई ! मैंने कभी भी पत्नी की इतनी प्रशंसा नहीं की थी ! कम से कम कमरे की सज़ावट को लेकर तो कभी नहीं ! हरीश के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर नारी-सुलभ स्वभाव के कारण उसका प्रसन्न होना स्वाभाविक ही था ! आज मुझे भी ऐसा प्रतीत होने लगा कि वास्तव में मंजू ने कमरे को सज़ाने में अपनी बुद्धिमता का सराहनीय प्रदर्शन किया है ! मंजू ने मंद-मंद मुस्करा कर हम तीनो की ओर देखा ! एक बार तो मुझे भी ऐसी स्त्री का पति होने पर गर्व अनुभव होने लगा ! मैं सोफे पर ज़रा अकड कर बैठ गया ! मेरा प्रत्येक अंग पुकार-पुकार कर कह रहा था “आखिर पत्नी किसकी है ?”

नौकर चाय तथा बिस्किट ले आया था ! मंजू ने चाय तैयार की ! सबसे पहले उसने एक प्याला हरीश की ओर बढा दिया ! शायद यह उसी प्रशंसा का प्रभाव था ! फिर एक-एक प्याला मेरी व उसके साले की ओर खिसका दिया और बिस्किट की तश्तरी हरीश के आगे कर दी !

हरीश ने एक बिस्किट उठा कर प्लेट मेरी ओर बढा दी तथा चाय का एक घूंट सुडप की आवाज के साथ चढा कर बोला – “भाई साहब, आप फ्रिज व टैलिविज़न भी ले लीजिए ! ड्राईंग-रूम के खाली कोने अच्छे नहीं लगते !”

”विचार तो मैं भी कर रहा हूं ! देखो, शायद एक-दो महीने में फ्रिज ले आंए !” मैंने साधारण सा उत्तर दिया !

”फ्रिज की बजाय आप पहले टी वी ले लें तो अधिक अच्छा होगा ! क्यों भाभी जी आपका क्या विचार है ?” हरीश ने मंजू की ओर मुडकर पूछा !

इससे पहले पत्नी भी मुझे टी वी लाने पर ही जोर दे रही थी ! उसे पिक्चर देखने का बहुत शौक है ! उसके विचार में फ्रिज से अधिक जरुरी टैलिविज़न था ! हम दोनो में इसी बात की बहस होती थी कि पहले कौन सी चीज़ लाई जाय ! हरीश ने तो मंजू के मन की बात कह दी थी !

पत्नी ने विजयी मुद्रा में मेरी ओर देखकर कहा – “हां, मैं भी इनसे यही कह रही थी कि टी. वी. ही ले आईए ! लेकिन तुम्हारे भाई साहब तो बस फ्रिज की ही जिद कर रहे हैं !”

”ठीक ही तो कहती हैं भाभी जी !” यह हरीश था ! “अब तो गर्मी केवल एक-डेढ महीना ही है ! फिर तो फ्रिज अगले वर्ष ही काम आयगा ! टैलिविज़न तो बारह महीने देखने की चीज़ है ! हमें भी आराम हो जायगा ! इसी बहाने आपके दर्शन भी हो जाया करेंगें !”

यह तो मनुष्य का स्वाभाविक गुण है ! बिना मतलब किसी से मिलने का भी समय नहीं ! इस आपाधापी के युग में समय की परिभाषा ही बदल गई है ! एक स्वार्थ ही तो है जो एक दूसरे को मिलने के लिए विवश करता है ! हरीश भी टी. वी. के बहाने ही हमारे ‘दर्शन’ करना चाहता है तो इसमें बुरा क्या है ?

”हां, देखो इस माह के अंत तक टी. वी. या फ्रिज ले ही आयेंगें !” मैंने अपनी बात में संशोधन किया !

“बस फिर तो केवल कालीन की कमी रह जायगी इस कमरे में !” उसके साले ने पहली बार मुंह खोला !

”हां कालीन तो अवश्य ही होना चाहिए, इसके बिना ड्राईंग-रुम, ड्राईंग-रुम ही नहीं लगता !” समर्थन हरीश ने किया !

“इसकी कमी मैं पूरी कर दूंगा !” उसके साले ने कहा 1

”क्या मतलब ?”

“परसों मैं आपको एक मिर्जापुरी कालीन भिजवा दूंगा !” तरुण भात की तरह बिछ गया ! परंतु मेरी समझ में कुछ भी न आया !

”इसका एक दोस्त कालीन का काम करता है ! आपको भेंट करने के लिए यह एक पीस उठा लाया है !” हरीश ने पर्दा हटा दिया !

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मैं तथा हरीश एक ही मकान में रहते थे ! मैं युनिवर्सिटी से लौटा तो हरीश भागा भागा फिर रहा था ! सामने पडने पर एकदम रास्ता रोककर बोला –“ भाई साहब, आपकी कोई जान-पह्चान है पुलिस स्टेशन में ?”

” पुलिस स्टेशन ?” मैं एकदम चौंक पडता हूं ! “हमारा पुलिस से क्या काम ? पर बात क्या हुई ?”

”कुछ नहीं बस, ऐसे ही एक छोटा सा काम फंस गया था !” हरीश जल्दी से इतनी बात कहकर बाहर चला गया ! बाद में पत्नी ने बताया कि हरीश रिश्वत लेता हुआ पकडा गया है ! कोई सिफारिश ढूंढ रहा है !

रात के दस बजे हरीश लौटा तो चेहरा खिला हुआ था ! पडौसी के नाते मैंने चिंता व्यक्त की तो वह बडी ही बेशरमी से बोला, “अरे भाई साहब, ये तो छोटी-मोटी बातें हैं ! इनसे घबराने लगे तो बीवी-बच्चों का गला घोंट कर कुंए में फेंकना पड जायगा ! पुलिस में तो सब घर के ही आदमी हैं ! मामला रफा-दफा…….हूं !” उसने हाथ नचाकर रफा-दफा होने के एक्टिंग की

तीसरे दिन दारोगा की बेटी की शादी थी ! हरीश उसे एक मिडियम साईज का रैफ्रीजिरेटर भेंट कर आया था !

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“अरे नहीं ब्रदर, हम इस एहसान का बोझ नहीं उठा पायेंगें !” मैं एकदम गम्भीर हो गया !

”इसमें एहसान जैसी क्या बात है ? यह तो संसार चक्र है ! ताली बजाने के लिए दूसरा हाथ होना आवश्यक होता है ! आप इसे “ईनाम” ही समझ लीजिए !” हरीश खुलने लगा !

”ईनाम..? ईनाम कैसा……?”

”अब आपसे क्या छिपाना भाई साहब ! यह मेरा ब्रदर-इन-ला देहरादून से आया है ! इसी साल इसने एम. ए. की है ! कल आपने जो लेक्चरार की पोस्ट के लिए इंटरव्यू लेना है उसके लिए यह भी एक उम्मीदवार है ! मेरा मतलब है……..!”

”मैं आपका मतलब समझ गया हूं !” मैंने हरीश की बात बीच में ही काट दी ! मेरे चेहरे पर क्रोध की रेखाएं खिंच गईं !

हरीश ने जेब से एक कागज़ निकाल कर दिया जो उसके साले का सी. वी. था !

“परसों मैं आपको कालीन भिजवा दूंगा !” उसके साले ने पुनः याद दिलाया !

मेरे शरीर की रगें तन गईं ! चेहरे पर लाल रेखाएं और गहरी हो गईं ! इसीलिए हरीश हर बात पर समर्पित हुआ सा लगता था ! उसके अपनेपन की बातें दिल को छू छू जाती थीं ! लेकिन हर बुरके के नीचे चांद नहीं छिपा होता ! स्वयं दमडों में बिकने वाला मुझे कालीन देकर खरीदना चाहता था !

“मेरा ईमान इतना सस्ता नहीं है मि. हरीश !” इतना कहकर मैंने उसके द्वारा दिया कागज़ उसके सामने ही चिन्दी-चिन्दी कर दिया

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राम कृष्ण खुराना
8066, 116 Street, 80 Ave. BC, Delta, CANADA.

khuranarkk.ca@gmail.com

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