KADLI KE PAAT कदली के पात
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कलमाडी से बडे तो नहीं
खेल गांव में निकला सांप, खेल गांव में निकला सांप,
कहीं हाथ में लिए लाठियां सभी खडे तो नहीं हैं ?
खेल खेल में खेल दिया महाखेल इन ओहदे वालों ने,
हमारी बिलों से लम्बी कहीं ये भ्रष्टाचार की जडें तो नहीं है ?
हमसे ज्यादा जहर और आग तो उनके दिलों में है !
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे के लिए कभी लडे तो नहीं हैं ?
सत्ता की छत पर चढकर तो कुत्ता भी बडा हो जाता है !
चिथडे में पलते इन हाथों में कहीं खाली घडे तो नहीं हैं ?
हम तो अपनी मैल उतार कर शुद्ध होने को बदलते हैं केंचुली,
यह सत्ता लोलुप दल-बदलू सफेद लिबास में हिजडे तो नहीं है ?
हम जहरीले हैं, हम काटते हैं, हम फुफकारते हैं अपनी रक्षा के लिए !
मनमोहन, सोनिया भी डरते जिससे, उस कलमाडी से बडे तो नहीं है ?
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