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जब डाकू अमृतलाल से मेरी भेंट हुई

KADLI KE PAAT कदली के पात
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जब डाकू अमृतलाल से मेरी भेंट हुई

राम कृष्ण खुराना

[यह मेरी पहली रचना है जो 8.11.1970 को दैनिक “हिन्दुस्तान” दिल्ली में प्रकाशित हुई थी  और इसके लिए मुझे उस समय 60/- रुपये पारश्रमिक के रूप में मिले थे ! यह एक सत्य कथा है जो कि मेरे पिता जी ने मुझे सुनाई थी]

बात उन दिनों की है जब मेरे पिता जी नहर विभाग में ओवरसीयर थे ! उनको चम्बल नहर पर राजस्थान में शिवपुर कलां के पास सर्वे करने के लिए भेजा गया था ! वहीं पर कुख्यात डाकू अमृतलाल के साथ एक घटना घटी जो उनकी जुबानी इस प्रकार है :-

हम लोग शिवपुर कलां से लगभग 17-18 मील दूर जंगल में अपने तम्बुओं में ठहरे हुए थे ! शिवपुर कलां से लगभग 15 मील दूर चम्बल नदी थी जिसे पार करने के लिए नाव के अलावा और कोई साधन न था ! हमारा कैम्प चम्बल नदी के दूसरी तरफ नदी से दो-तीन मील आगे था ! वहीं सर्वे का काम चल रहा था ! मुझे सर्वे के काम के कारण कई बार शिवपुर कलां भी आना-जाना पडता था

हम लोग सुबह उठकर नाश्ता आदि करके अपने काम पर लग जाते थे ! फिर एक बजे छुट्टी करके खाना खाकर थोडा आराम करके दो या ढाई बजे फिर काम पर लग जाते थे ! संध्या को दिन डूबने पर काम समाप्त करके विश्राम के लिए अपने तम्बुओं में चले जाते थे !  उस दिन भी हम रोज की तरह दोपहर को भोजन करने के उपरांत विश्राम कर रहे थे कि दिन के लगभग दो बजे 11 आदमी आए जिनके पास 22 घोडे थे ! अर्थात प्रत्येक आदमी के पास दो घोडे ! उन्होंने खादी वर्दी पहन रखी थी ! आते ही बडे रौब से बोले – “हमें पानी पिलाओ !”  मैंने एक मजदूर को कहकर उनको पानी पिलवाया !  पानी पीकर वो चले गए !

दूसरे दिन मुझे किसी काम से शिवपुर कलां जाना पडा ! वहां हमारे एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनीयर साहब रहते थे ! मैंने उनसे मिलने जाना था ! मैंने नाव से नहर पार की तथा दूसरी तरफ जहां बस खडी थी चल दिया ! वहां पर दो बसें खडीं थीं ! मैंने सोचा कि यहां भीड बहुत होती है अतः जल्दी चलना चाहिए जिससे बस में बैठने की जगह मिल जाय ! वरना उसके बाद तीन-चार घंटे बाद ही बस मिलेगी ! उस समय दिन के ग्यारह बजे थे !

मैं जब बस के पास पहुंचा तो देखा कि वहां पुलिस के कुछ जवान खडे हैं और एक ट्रंक की तलाशी-सी ले रहे हैं ! मैंने सोचा के यह पुलिस के अधिकारी होंगे और तस्करी के सामान या शराब के बारे में तलाशी ले रहे होंगे ! उनका तमाशा देखने के लिए मैं भी उन सबके बीच में जाकर खडा हो गया और तमाशा देखने लगा ! मैंने देखा कि वे पुलिस की वर्दी पहने 11 आदमी थे ! सभी हट्टे-कट्टे जवान ! वे लोग ट्रंक में से गहने व कीमती सामान निकाल रहे थे ! अभी मुझे वहां खडे कुछ ही देर हुई थी कि एक जवान मेरे पास आया और उसने पूछा –

“तुम कौन हो ?”

”तुम्हारा नाम क्या है ?”

”तुम यहां पर क्या करते हो ?”

उसके एकाएक इतने प्रश्न सुन कर पहले तो मैं घबरा गया ! फिर साहस बटोर कर मैंने उनको अपने बारे में बताया कि मैं  यहां ओवरसीयर हूं और नहर के महकमें में काम करता हूं !  तभी उनका सरदार, जो कि एक लम्बा तगडा जवान था, उसके चेहरे पर रौब झलक रहा था, हाथ में बन्दूक लिए मेरे पास आया ! उसने मेरी बात सुन ली थी !

वह मेरे पास आकर बोला – “तुम नहर के महकमें में काम करते हो ! हम तुम पर बहुत खुश हैं मैं नहर के महकमे में काम करने वालों पर बहुत खुश हूं ! आप लोग देश की सेवा कर रहे हैं !” वह इतना कहकर कुछ देर के लिए चुप हो गया ! फिर बोला – “मेरा नाम अमृतलाल है ! मैं डाकू हूं और इस सेठ को लूट रहा हूं !”

इतना सुनते ही मुझे अपने पैरों की जमीन सरकती सी मालूम पडी ! मैं हक्का-बक्का सा उसका मुंह देखने लगा ! मेरे मुंह से एक शब्द भी न निकला ! मुझे चुप देखकर अमृतलाल ने ही कहा – “तुम्हें अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताओ ! जिसको तुम कहो उसको शाम होने से पहले-पहले स्वर्ग भेज दूं ! तुम्हारा कोई दुश्मन तुम्हें तंग करता हो तो बताओ ! मैं अभी उसके टुकडे-टुकडे करवा दूं !”

मुझे काटो तो खून नहीं ! मैंने हाथ जोड कर कहा – “मुझे तो यहां आए अभी कुछ ही दिन हुए हैं ! मेरा यहां पर कोई भी दुश्मन नहीं है ! आपकी दुआ से मुझे किसी चीज़ की कमी भी नहीं है ! मैं सब प्रकार से यहां सुखी हूं !”

“तुम्हें कहां जाना है ?” अमृतलाल ने पूछा !

“शिवपुर कलां !” –  मैंने उत्तर दिया !

“कैसे जाओगे ?” उसने पूछा तो मैं ने कहा  “इसी बस से जाउंगा !”

मेरी बात सुनकर पहले तो वो मुस्कराया फिर बोला – “यह बस तो तुम्हें अब चार-पांच बजे ही मिलेगी ! अभी तो मैं इन बसों को अपने साथ ले जा रहा हूं ! तुम्हें तब तक यहीं पर इंतज़ार करना पडेगा ! तब तक तुम एक काम करो कि जो लोग नाव से इस ओर आ रहे हैं उन्हें भी कह दो कि वो उधर ही ठहर जांय ! क्योंकि यह बस अब अभी नहीं जायगी ! तुम लोगों को इतना कहकर वापिस आ जाना !”

मैंने वैसा ही किया और फिर वापिस उनके पास आ गया !  मेरे देखते देखते डाकू अमृतलाल ने उस सेठ के कई हजार रुपये व गहने लूट लिए ! सेठ के दो लडके थे ! एक की आयु लगभग 25-26 साल और दूसरे की लगभग 22-23 साल रही होगी ! दोनो की शादी हो चुकी थी ! दोनो ही सुन्दर लडके थे ! छोटे लडके की शादी हुए अभी एक-दो महीने ही हुए थे ! उन दोनो की बहुंए भी साथ ही थीं ! सब रो-पीट रहे थे ! सेठ भी डाकू के आगे बहुत गिडगिडाया पर डाकू के कान पर जूं तक न रेंगी !  उसने सभी माल और गहने एक ट्रंक में रखवाये ! सेठ के दोनो लडकों को बस में अपने साथ बैठने का हुक्म दिया ! फिर सेठ की तरफ मुड कर बोला “मुझे एक महीने के अन्दर-अन्दर तीन लाख रुपये भिजवा देना तो तुम्हारे दोनो लडकों को छोड दूंगा ! वर्ना एक महीने के बाद इनको कत्ल कर दिया जायगा !”

सेठ का पूरा परिवार रो रहा था ! ऐसा हृदय विदारक दृश्य देखा न जा रहा था ! सेठ ने बहुत हाथ पैर जोडे पर अमृतलाल अपनी वाणी में अमृत न घोल सका ! फिर उसने अपने साथियों को बस में चढने का आदेश दिया !

जाते समय अमृतलाल फिर मेरे पास आया ! और बोला – “मैं अब जा रहा हूं ! तुम्हे किसी प्रकार की तकलीफ हो तो मुझे बताना ! मैं नहर के महकमें वालों पर बहुत खुश हूं !” इतना कहकर उसने अपनी जेब से एक सौ रुपये का नोट निकाला और मुझे देते हुए कहा – “यह लो मेरी तरफ से इनाम ! अपने बच्चों को मिठाई खिला देना !

मैंने हाथ जोडकर कहा – “नहीं ! मुझे किसी चीज़ की जरुरत नहीं है ! मुझे यह रुपये नहीं चाहिए !”

परंतु उस डाकू ने मुझे जबरदस्ती सौ रुपये दे दिए ! मैंने भी ज्यादा आना-कानी करना उचित नहीं समझा ! उसी तरह से बंधे हाथों से सौ का नोट लेकर अपने पास रख लिया !

तभी एक जवान ने ड्राईवर की पीठ पर बन्दूक रख दी ! दूसरी खाली बस को उसके साथ लगा लिया ! एक बस में 11 डाकू तथा सेठ के दोनो लडकों को बिठा कर बस चलाने का आदेश दे दिया !

उनके जाने के बाद मैंने सेठ को सांत्वना देने का प्रयास किया ! औरतें तो केवल रोती ही जाती थीं ! मैंने सेठ से पूछा – “तुमने नाम-पता ठिकाना वगैरह तो पूछा ही नहीं ! फिर यह रुपये तुम इनको कहां देने जाओगे ?”

सेठ का उत्तर सुन कर मैं हैरान हो गया ! सेठ बोला – “यहां का बच्चा-बच्चा डाकू अमृतलाल के बारे में जानता है !” मैं सोचने लगा कि जब हर कोई इनके बारे में जानता है तो पुलिस इनको पकडती क्यों नहीं ! मैं उस दिन बहुत घबरा गया था ! मैंने अपने मन में सोचा कि आज तो इसका मूड ठीक था ! क्योंकि उसे आज काफी माल मिल गया था ! सेठ के दो लडकों को भी अपने साथ ले गया था ! जिसके उसे तीन लाख रुपये मिलने थे ! इसलिए मुझे भी ईनाम दे दिया ! यदि कहीं कोई ऐसी-वैसी बात हो गई तो मैं तो कहीं का नहीं रहूंगा ! मेरे पास तो सरकार का पैसा भी रहता है ! कहीं किसी दिन डाकू ने लूट लिया तो कोई मेरी बात पर विश्वास नहीं करेगा और मेरे खिलाफ गबन का केस भी बन सकता है !

यही सब सोचकर मैंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और वापिस घर आ गया !

राम कृष्ण खुराना

9988950584

khuranarkk@yahoo.in

khuranarkk.jagranjunction.com

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