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कि भाई सुनो…..(हास्य-व्यंग)

KADLI KE PAAT कदली के पात
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कि भाई सुनो…..

राम कृष्ण खुराना

कि भाई सुनो ! इलेक्शन-विलेक्शन तो अब खत्म हो गया ! अब तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं ! अब तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं क्योकि अब कारों की पों-पों और स्पीकरों की भौं-भौं तुम्हारे कानों के परदों में सूराख नहीं करेगी मोटर गाडियों के पीछे उडते हुए धूल के गुब्बारों को आंधी समझ कर अब तुम्हे अपनी बिना दरवाजे की झोंपडी में धूल को घुसने से रोकने के लिए दरवाजे पर फटा हुआ टाट नहीं डालना पडेगा ! अब तुम्हारे नाक को चुनाव में खडे उम्मीदवारों के किराए के आदमियों द्वारा फैलाई मुर्दा नारों की सडी बदबू से राहत मिल जायगी !

कि भाई सुनो, चुनावों की हलचल में हमेशा ही तुम्हारा जीवन अस्त-व्यस्त हुआ है ! अतिथि सत्कार के बोझ तले दबे तुमने इन नेताओं की सेवा करने में अपने शरीर का कितना गोश्त बेचा है इसकी खबर शायद तुम्हें भी नहीं ! तुम तो सारा दिन अपनी रोज़ी छोड कर नेताओं के टेंट लगाकर और मंच सजा कर केवल उनका भाषण सुन कर अपना पेट भर लिया करते थे ! परंतु उन दिनों तुम्हारे काम पर न जाने से तुम्हारे नंगे घूमते बच्चों ने किस प्रकार अपनी भूखी अंतडियों को तसल्ली दी होगी यह तुम्हारे नेता जी क्या जानें ? तेरह जगह से फटी साडी से अपने शरीर को ढकने मे असमर्थ तुम्हारी औरत ने चुनावों के चहल-पहल में नेताओं के चम्मचों की नज़रों से बचने के लिए झोंपडी में कैसे दिन गुजारे हैं इसकी खबर किसको है ?
कि भाई सुनो, तुम्हें तो सिर्फ काम की चिंता होनी चाहिए ! फल की चिंता करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है ! यह गीता का वाक्य है ! भगवान कृष्ण का आदेश है ! जिसे तुम्हें मानना ही होगा ! अगर तुम नही मानोगे तो यह “कोप देवता” तुम्हें जला कर राख कर देंगें ! “अपहरण देवता” तुम्हारी जवान बहू-बेटियों को उठा कर ले जांयेंगे ! “पुलिस देवता” तुम्हारी पत्नी का चीर-हरण करके तुम्हारी झोंपडी में आग लगा देंगे ! मेहनत मज़दूरी करना तुम्हारा फर्ज है ! तुम्हारा कर्तव्य है ! तुम्हारा धर्म है ! फिर पैसे किस बात के ? मेहनत करने के बाद तुम पैसे मांगते हो इसी लिए तो तुम गरीब हो ! अमीर लोग तो बिना मेहनत किए ही पैसे छीन लिया करते हैं  इसीलिए वो अमीर हैं !

कि भाई सुनो, जो नेता चुनाव जीत गए हैं उन्हें अपनी जीत की खुशी मनाने से फुरसत नहीं ! जो हार गए हैं उन्हें अपनी हार का गम मनाने से फुरसत नहीं ! वो जीत की खुशी में स्काच पी रहे हैं ! वो हार के गम में स्काच पी रहे हैं ! तुम उनके द्वारा उडाये जा रहे मांस की हड्डियों के इंतज़ार में क्यों बैठे हो ? उन हड्डियों के हकदार तो सिर्फ उनके कुत्ते हैं ! तुम उनके कुत्ते नहीं हो ! तुम उठो और अपने पुराने ढर्रे पर लग जाओ ! अपना पुराना काम शुरू करो ! क्योंकि काम करना तुम्हारा फर्ज है फल की चिंता करने का तुम्हें कोई हक नहीं !

राम कृष्ण खुराना

लुधियाना  (पंजाब)

9988950584

khuranarkk@yahoo.in

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