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चौगुना दुःख

KADLI KE PAAT कदली के पात
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चौगुना दुःख

वह भी रो रहा था ! दहाडें मार-मार कर रो रहा था ! इतना जानते हुए भी कि उसके रोने से उसके स्वर्गवासी पिता वापिस नहीं आ सकते ! परंतु जिस पिता ने उसे जन्म दिया, इतने वर्षों तक पाल-पोस कर इतना सक्षम बनाया तथा सदैव आशीर्वाद का हाथ सिर पर रखा उसके बिछुडने का दुख उसे एक दिन लगातार रोने के लिये विवश करता रहा !

उसको रोता देख कर आस-पडोस के लोग उसे सांत्वना देने पहुंच गए ! पहुंचना ही था ! मोहल्ले के सभी बूढों ने उसके सिर पर हाथ रख कर उसे इस नश्वर संसार का ज्ञान कराया ! फिर बोले – “क्या हुआ यदि तुम्हारा बाप मर गया तो ? हम तो जिन्दा हैं 1 हम भी तुम्हारे बाप हैं !”
इतनी सांत्वना पाकर वह चुप हो गया !

भाग्य का खेल ! दो माह पश्चात ही उसकी मां भी इस नश्वर संसार को छोड कर चली गई ! वह फिर रोया ! इस बार उसे दोगुना दुख था ! इस बार वह दो दिन तक लगातार रोता रहा ! मोहल्ले की सभी बूढी औरतें इकट्ठी होकर उसे सांत्वना देने लगीं – “अरे तू रोता क्यों है ? क्या हुआ अगर तुम्हारी मां मर गई तो ? हम तो जिन्दा हैं हम तुम्हारी मां हैं !”
इतना सुनकर वह फिर चुप हो गया !

परंतु दुख अकेले नहीं आता ! छः माह बीतते न बीतते उसकी पत्नी को भी भगवान ने अपने पास बुला लिया ! उसके दुख का पारावार न रहा ! अब उसे तिगुना दुख था ! वह रोया ! बहुत रोया ! रोता रहा ! रोता रहा ! एक दिन….दो दिन….तीन दिन….पूरे सात दिन तक रोता रहा ! परंतु इस बार मोहल्ले की कोई भी नवयुवती उसे यह कहने नहीं आई कि अरे, क्या हुआ जो तुम्हारी पत्नी मर गई तो ? मैं तो जिन्दा हूं ! मैं भी तुम्हारी पत्नी हूं !

इस बात का उसे चौगना दुख था !

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