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रौशनी दिखती नहीं
राम कृष्ण खुराना
बचपन में हम झूम-झूम के गाया करते थे – “जो वादा किया वो निभाना पडेगा !” परंतु जब हम कुछ बडे हुए तो हमारी समझ में यह बात आने लगी कि वादा निभाने की बातें तो सन उन्नीस सौ बीस की बातें हैं राकेट युग में तो केवल वादा करना ही आवश्यक होता है निभाना नहीं !
हालत यहां तक आन पहुंची है कि जब से इस बेरहम दुनिया ने मुझे एक अदद बीवी का पति घोषित कर दिया है तब से मैं अपनी बीवी से वायदा करता आ रहा हूं कि अगली पे मिलते ही मैं तुम्हें एक नई साडी ला दूंगा ! मेरी बीवी भी बकायदा वायदा पूरा होने के इंतज़ार में बडे आराम से दहेज में मिली साडियों को तार-तार होने तक निभाती चली आ रही है !
प्रधान मंत्री बनने के पश्चात मोरार जी देसाई ने भी कहा था कि चुनाव के दौरान किए गए सभी वायदे पूरा करना जरूरी नहीं है ! इसी बात को सभी नेता बदस्तूर निभाये जा रहे हैं ! बात पुरानी है ! एक बार जब श्रीमति इन्दिरा गांधी चुनाव हार गईं थीं तो अगले चुनाव में श्रीमति गांधी ने डीज़ल व मिट्टी के तेल की दुहाई देकर जनता पार्टी पर सारा तेल पी जाने का आरोप लगाया था ! और सत्ता हाथ में आने पर तेल की नदियां बहा देने का वायदा किया था ! परंतु यदि वादा निभा ही दिया तो वो वायदा कैसा ? श्रीमति गांधी ने तेल के साथ-साथ चीनी की भी कद्र लोगों की नज़रों में बढा दी ! जनता इन को पाने के लिये राशन की दुकानों के सामने लम्बी-लम्बी कतारों में घंटों खडी तरसती रहती थी !
तब से लेकर आज दिन तक जितने भी चुनाव हुए हैं हर चुनाव में सभी नेता हर बार गरीबी हटाने, मंहगाई भगाने तथा नौकरी पर लगाने का वायदा करते हैं ! वायदे सुनकर तो कहने को जी चाहता है कि –
वही लह्ज़ा, वही तेवर, कसम है तेरे वादों की !
ज़रा भी शक नहीं होता कि यह झूठी तसल्ली है !
क्योंकि जनता चुनावों में बडे विश्वास और उत्साह के साथ वोट देकर इन नेताओं को जिताती है ! परंतु आज भी हनुमान की पूंछ की तरह बढती मंहगाई, अन्धों व गरीबों पर लाठीचार्ज, पुलिस द्वारा हरिजनों पर अत्याचार तथा महिलायों से बलात्कार की घटनायें देख व सुन कर दिल दहल जाता है !
क्या इसी सूरज की आशा में किया था रतजगा ?
नाम तो सूरज है, लेकिन रौशनी दिखती नहीं !!
अब तो इन नेताओं के वायदे सुन कर लोग यही कहने लगे हैं –
वादे करके जो आपने एहसान किया है,
पूरा करके उन्हें हम पर और एहसान न करो !
जनता को इन राजनितिक पार्टियों का पता चल गया है ! इनकी पोल खुल चुकी है ! नेताओं का दुर्भाग्य है कि जनता कुछ-कुछ समझदार होती जा रही है ! अब इन नेताओं को जनता को बेवकूफ बनाने में बहुत कठिनाई आ रही है और उनको ज्यादा मेहनत करनी पड रही है ! जिस के लिए नेता लोग तरह- तरह की तरकीबें लडाने लगे हैं ! क्योंकि जनता को मालूम हो गया है कि –
खुली हवा में लाने का दम भर रहे हैं वो,
घरों में जिनके यारों रौशनदान भी नहीं !
राम कृष्ण खुराना
9988950584
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