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कि तुम नाराज़ न होना – (हास्य-व्यंग)

KADLI KE PAAT कदली के पात
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कि तुम नाराज़ न होना

राम कृष्ण खुराना

मेरी प्रेमिकाओं में सबसे प्रिय,

यह मेरा प्रेम पत्र पढ कर के तुम नाराज़ न होना ! क्योंकि यह तुम्हें मेरा आखरी प्रेम पत्र है !  वैसे भी आधुनिक प्रेमिकायें नाराज़ नहीं हुआ करतीं !  तुम मेरी मज़बूरी को भी तो समझो !  तुम मुझे हर बार यही कहती हो कि मैं तुम्हे प्रेम पत्र बन्द लिफाफे में ही भेजा करूं जिससे कोई दूसरा न पढ ले !  लेकिन मैं क्या करूं ?  सरकार ने हर चीज़ के दाम इतने बढा दिये हैं कि आजकल रोज़ी-रोटी का जुगाड करना भी मुश्किल हो रहा है !  तुम तो जानती हो कि मैं ठहरा (बिना कार का) व्यंगकार !  कभी-कभी किसी अखबार या रिसाले में छप जाता हूं !  इतनी मंह्गाई में लिफाफा खरीदने की हिम्मत नहीं होती !  इसलिए अब मैं तुम्हें प्रेम पत्र नहीं लिख पाऊंगा !

मैं जानता हूं कि बन्द लिफाफे के कई फायदे होते हैं !  उससे तुम्हें एक फायदा तो यह होता था कि तुम खत का मज़मूं लिफाफा देख कर ही भांप लिया करती थी !  और तुम्हें पूरा खत पढ्कर बोर होने की तोहमत नहीं उठानी पडती थी !  अब तुम्हें मज़मूं भांपने के लिए पूरा का पूरा खत पढना पडेगा !  जिन्दगी वैसे ही बहुत छोटी है !  तुम्हारा कितना कीमती वक़्त खत पढने में ही खत्म हो जाया करेगा !  पहले तुम इस बचे हुए समय का सदुपयोग अपने बास के केबिन में उसके साथ एक ही गिलास में ठंडा-ठंडा जूस पीने में किया करती थी !

दूसरे, मेरा लिफाफा लेने के लिए जो तुम अपने ओफिस के चपरासी की मिन्नत किया करती थी तथा ओफिस के ‘फ्रेंड्स’ के छेडने से जो तुम्हारे अन्दर गुदगुदी हुआ करती थी तुम उस सुख से वंचित हो जाओगी !  तीसरे सबूत न होने के कारण तुम अपनी सहेलियों में मेरा जैसा बुद्दू प्रेमी पालने का रौब नहीं गांठ पाओगी !

परंतु तुम्हें इससे घबराने की जरूरत नहीं है !  क्योंकि जंहा दृडता नहीं होती वहां प्रेम का कोई महत्व नहीं होता !  प्यार में तो कुछ न कुछ खोना ही पडता है !  दुख उठाना ही पडता है !  शायद एक बिरहनी ने इसी दुख से दुखी हो कर ही कहा था – “ जो मैं यह जानती, प्रीत करे दुख होय !  नगर ढिंढोरा पीटती, प्रीत न करयो कोय !’ प्रेम के रास्ते में तो कई कांटे आते है !  सच्चे प्रेमी छोटी-छोटी मुसीबतों से नहीं घबराया करते !

प्रिये, घर के दरवाजे बन्द होने से दिल के दरवाजे बन्द नहीं हो जाया करते !  सरकार के मंहगाई कर देने से हमारा प्यार कम थोडे ही हो जायगा !  अब फिर पुराने रिति-रिवाज़ चल पडे हैं !  जैसे तुम लडकियों ने बैल-बाट छोड कर दोबारा सलवार पहननी शुरू कर दी है उसी प्रकार अब पैगाम भी पहले की ही तरह भिजवाये जाया करेंगें !

‘लैला-मज़नू’ में मज़नू ने अपना पैगाम हिरणी के हाथ अपनी लैला तक पहुंचाया था !  राम जी ने सीता माता को अपने दिल की बात कहने के लिए हनुमान जी को भेजा था !  कालिदास ने मेघ को दूत के रूप में पेश कर दिया !  हमारे बुजुर्गों के जमाने में यही काम कबूतर किया करते थे !  तब लिफाफों की जरूरत नहीं पडती थी !  इसी को ध्यान में रखकर मैंने भी अब घर में चूहे पालने शुरू कर दिए हैं !  तुम भी अपने घर में एक-आध बिल्ली पाल लो !  इधर मैं चूहे के कान में अपना रोना रो दिया करूंगा, उधर तुम्हारी बिल्ली मेरे भेजे हुए चूहों को खाकर मेरा पैगाम तुम तक पहुंच दिय करेगी !

मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है !

प्रियत्मे, तुम यह भी तो सोचो कि इससे लाभ भी कितने हैं !  अब हमारा अधिक समय रंगीन व खूबसूरत लिफाफे ढूंढने में नष्ट नहीं हुआ करेगा !  फिर तुम्हारी सहेलियां मेरे लिये ‘लिफाफा कहीं का’ विशेषण का प्रयोग करके तुम्हें नहीं चिढाया करेंगी ! तीसरा लाभ यह होगा कि कभी-कभी मैं झोंक में आकर तुम्हें इतना लम्बा खत लिख मारता था कि लिफाफे के बैरंग हो जाने के कारण तुम्हें फालतू पैसे देकर पोस्टमैन से पीछा छुडवाना पडता था !  अब तुम उन्हीं पैसों से अपने बालों की सेहत के लिए अपना मन पसंद प्यारा सा शैम्पू खरीद सकती हो !  फिर मेरे खत के इंत्ज़ार में तुम्हें अपनी रातें खराब करने के झंझट से छुट्कारा मिल जायगा !  अच्छा, अलविदा !

तुम्हारा  —

राम कृष्ण खुराना

9988950584

khuranarkk@yahoo.in


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