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आदमी की पूंछ – (हास्य-व्यंग)

KADLI KE PAAT कदली के पात
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आदमी की पूंछ

जब से मैने सुना है कि कलकत्ता के राम कृष्ण मिशन अस्पताल में एक पूंछ वाले बच्चे ने जन्म लिया है तब से मैं बहुत खुश हूं !  हमारे पूर्वजों की भी पूंछ हुआ करती थी !  डाक्टरों का कहना है कि जब एक-डेढ महीने का भ्रूण पेट में होता है तो उसकी भी पूंछ होती है !  और नौ महीने बीतते-बीतते वह पूंछ समाप्त हो जाती है !  परंतु इस बच्चे ने पुराने संस्कार त्यागने से इंकार कर दिया !  और पूंछ सहित पैदा हो गया !  इस हिसाब से यह बच्चा हमारे पूर्वजों का लघु-संस्करण है !  अतः पूज्यनीय है !  यह मेरा दुर्भाग्य है कि पूज्यनीय पूर्वज का जन्म कलकत्ता में हुआ !  मैं ठहरा एक अदना सा व्यंगकार, इतना किराया खर्च करके उस महान आत्मा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने में असमर्थ हूं !  अतः यहीं बैठे-बैठे ही मैं उस महापुरुष को साष्टांग प्रणाम करता हूं !

कह्ते हैं कि हमारे पूर्वजों की भी एक प्यारी-सी, छोटी-सी पूंछ हुआ करती थी !  परंतु मनुष्य तो जन्म से ही इर्ष्यालू है ! जानवरों की लम्बी पून्छ उसे फूटी आंख न भाई !  बस, मनुष्य ने भगवान की व्यवस्था के विरुध आन्दोलन छेड दिया !  नारे लगने लगे !  रैलियां निकलने लगीं क्रमिक भूख-हडताल से लेकर आमरण अनशन तक रखे जाने लगे !  चारों ओर हाहाकार, लूटमार मच गई !  भगवान के (यम) दूतों ने मनुष्य को बहुत समझाया !  परंतु मर्ज बढ्ता गया ज्यों-ज्यों दवा की !  मनुष्यों की मांग थी कि हमारी पूंछ को बडा करो !  कुछ लोगों ने तो जानवरों की पूंछ को विदेशी नागरिकों की संज्ञा दी और उसे काटने की मांग करने लगे !  भगवान भी परेशान !  लोग भूख ह्डताल व यमदूतों के गदा प्रहारों से धडाधड मरने लगे !  न नर्क में जगह बची न स्वर्ग में !  गुस्से से भरकर भगवान ने नर्क व स्वर्ग की तालाबन्दी कर दी !  और आदमी की पूंछ जड से ही काट कर आदमी को जमीन पर धक्का दे दिया !  तब से मनुष्य पूंछ के बिना लुटा-लुटा सा घूम रहा है !

यदि मैं यहां पूंछ के गुणों का बखान करने लगूं तो एक महाकाव्य ही तैयार हो जाय !  आपको याद होगा कि हनुमान जी ने अपनी पूंछ से ही सारी लंका जला दी थी !

जिस प्रकार से मनुष्यों में इज्जत की निशानी मूंछ होती है उसी प्रकार से जानवर भी अपनी पूंछ की बेईज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकते !  एक सिर फिरे आदमी ने एक कुत्ते की घनी व लच्छेदार टेढी पूंछ को सीधा करने का प्रयास किया था !  कहते हैं कि 12 साल बाद भी कुत्ते ने अपने जाति-स्वभाव को नहीं छोडा !  और उसकी पूंछ टेढी ही रही !

जब मेरी मूंछे फूटनी शुरु ही हुई थी तो मेरे दिल में मूंछ पर एक कविता लिखने की सनक सवार हो गई !  उस कविता में मूंछ की तुक पूंछ से भिडाते समय मेरे दिल में अचानक यह ख्याल आया कि आदमी की पूंछ क्यों नहीं होती ?  मैंने अपनी पीठ पर रीढ की हड्डी के नीचले सिरे तक हाथ फिरा कर देखा और पून्छ को नदारद पाकर मुझे बहुत दुख हुआ !  बस मैं कागज़ कलम वहीं पर पटक कर दौडा-दौडा अपने पिता जी के पास गया और उन से आदमी की पूंछ न होने की शिकायत की !  पिता जी ने दूसरे ही दिन मेरी शादी कर दी !  यानि बाकायदा मेरी पूंछ मेरे पीछे चिपक गई !  अब यह पूंछ इतनी लम्बी हो गई है कि मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो गया है !  और घर में केवल पूंछ ही पूंछ दिखाई देती है !  अब मैं इस बढी हूई पूंछ से इतना परेशान हूं कि इसको काटने के तरह-तरह के उपाय सोचता रहता हूं परंतु यह बढती ही जाती है ! सोचता हूं बिना पूंछ के ही ठीक था !

राम कृष्ण खुराना

99889-50584

khuranarkk@yahoo.in

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