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क्षण बोध

KADLI KE PAAT कदली के पात
KADLI KE PAAT कदली के पात
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क्षण बोध

राम कृष्ण खुराना

जब मैं दूसरी कक्षा में हुआ तो मेरे भाई साह्ब ने पांचवीं पास कर ली थी !  मुझे आष्चर्य-सा होता था कि यह इतनी किताबें किस प्रकार से पढ लेते हैं !  और पास भी हो जाते हैं !  प्रायः मैं भाई साहब से पूछा करता था –“ भईया, आप इतनी किताबें कैसे पढ लेते हो ?”  तो भाई साहब बडे प्यार से कहते, “घबरा मत जब तू बडा होगा तो यही किताबें पढा करेगा !”

मैंने पांचवीं कक्षा में सबसे अधिक अंक लिये !  उस समय मैं मैट्रिक करने वालों को जादूगर समझा करता था !  एक दिन मैंने एक तृतीय श्रेणी मैट्रिक पास पडोसी से पूछा – “आपने दसवीं कैसे पास कर ली ?  इसके लिये तो बहुत पढना पडता होगा ?”

“और नहीं तो क्या ?” पडोसी ने इतराते हुये जवाब दिया !

मैट्रिक मैने खेल-खेल में पास कर ली !  मैंने एक सज्जन से इसका सगर्व जिक्र किया !  पहले तो वो मुझे एकटक इस प्रकार से देखते रहे जैसे कि मेरे दिमाग की कोइ चूल ढीली हो गई है !  फिर कदाचित मेरी बुद्धि पर तरस खाकर बोले – “ तो तुमने कौन सा तीर मार लिया ?  आजकल  मैट्रिक पास की वैल्यू ही क्या है ?”

मैने आव देखा न ताव, झट से कालेज में प्रवेश ले लिया !  तब मैं भी यह समझने लगा था कि वास्तव में मैट्रिक में कुछ नहीं था !  अब बी. ऐ. करेंगे तो पता चलेगा !

बी. ऐ. का प्रथम श्रेणी का प्रमाण पत्र मिलने के बाद मेरे दिल में यह विश्वास हो गया कि अब मुझे अपने माता-पिता पर बोझ बनने की आवश्यकता नहीं !  परंतु यह हवा महल भी एक इंटरव्यू में एक ही वाक्य से ढह गया !  “बी.ऐ. पास तो आजकल धक्के खाते फिर रहे हैं !  हां यदि तुम एम.ऐ., बी.एड. होते तो शायद बात बन जाती ! “

मैंने एम.ऐ. और बी.एड. का लेबल भी लगा लिया !  नौकरी के लिये चक्कर लगाते-लगाते जूते के निचले भाग में सूराख हो जाने के कारण उसमें से सारी दुनिया नज़र आती है !  आज टेबल पर सारी डिग्रीयां बिखरी पडी हैं !  जब पीछे मुड कर देखता हूं तो सोचता हूं कि इस पढाई में कुछ भी नहीं था !  आज मुझे दु:ख हो रहा है कि अपने जीवन के इतने बहुमूल्य वर्ष ऐसे ही गंवा दिये !  यदि एम.ऐ., बी.एड. का ठप्पा न लगा होता तो कम से कम बूट पालिश करके या रिक्शा चला कर अपने पेट की आग तो शांत कर सकता था !

राम कृष्ण खुराना

9988950584

khuranarkk@yahoo.in



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